अन्यत्र पढ़ाई

 

   मेरा इरादा था कि तुम्हें अपनी पढ़ाई के लिये, उसके बारे मे कुछ भी कहे बिना जाने दूं क्योंकि हर एक को अपना चूना हुआ मार्ग अपनाने की छूट होनी चाहिये । लेकिन तुमने जौ लिखा हैं वह मुझे कुछ लिखने के लिये बाधित कर रहा है ।

 

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  निःसंदेह, बाह्य दृष्टि से इंग्लैंड में तुम्हें वह सब मिलेगा जो तुम पाना चाहते हो, जिसे मनुष्य ज्ञान कहते हैं । लेकिन ' सत्य' और 'चेतना' की दृष्टि से तुम्हें वह वातावरण कहीं नहीं मिलेगा जिसमें तुम यहां रह रहे हो । दूसरी जगहों पर तुम धार्मिक या दार्शनिक भाव पा सकते हो, लेकिन सच्ची आध्यात्मिकता, भगवान् के साथ सीधा संबंध, उन्हें मन, प्राण और क्रिया में पाने की सतत अभीप्सा आदि ऐसी चीजें हैं जिन्हें जगत् में बिखरे हुए विरले व्यक्तियों ने ही पाया है और ३ किसी भी विश्वविद्यालय में जीवित तथ्य के रूप में नहीं हैं, वह चाहे कितना भी उन्नत क्यों न हो ।

 

  व्यावहारिक रूप में, जहांतक तुम्हारा संबंध है, तुमने जो अनुभूति प्राप्त की हैं उससे बह जाने का बड़ा खतरा है और तब यह नहीं कहा जा सकता कि तुम्हारा क्या होगा ।

 

  मैं इतना हीं कहना चाहती थी- अब चुनना और निश्चय करना तुम्हारे हाथ मे हैं ।

 

(२२ -१० -१९५ २)

 

   हम ' की या तो आजीविका की खोज मे या अध्ययन के लिये आश्रम छोड़कर जाते हुए देखते; ये ऐसे लोग जो बचपन से यहां ' जब युवक औरों को जाते हुए देखते तो उनमें एक प्रकार की अनिश्चितता- सी और थे सावधानी के सक् : ''कौन जाने किसी दिन ' मरी बारी मी न ना जाय ? '' लगता कि इन सबके पीछे शक्ति हैं? वह क्या हैं ?

 

यह अनिश्चितता और ये प्रयाण निम्न प्रकृति के कारण हैं जो योग-शक्ति का प्रतिरोध करती है और भागवत क्रिया को धीमा करने की कोशिश करती ३, किसी बुरी भावना से नहीं, बल्कि यह निशित करने के लिये कि लक्ष्य की ओर बढ़ने की जल्दी में कोई चीज भुला न दी जाये, किसी की अवहेलना न हो जाये । बहुत हीं कम हैं वे लोग जो संपूर्ण समर्पण के लिये तैयार हैं । बहुत-से बच्चे जो यहां पड रहे हैं उन्हें भागवत कार्य के लिये तैयार होने से पहले जीवन के साथ भिड़ना की जरूरत हैं । इसीलिये वे सामान्य जीवन की कसौटी पर केस जाने के लिये यहां से जाते हैं।

 

(११-११-१९६४)

 

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  (एक विद्यार्थी को किलकते मे क्रियात्मक पाठधक्रम मे सम्मिलित ह7एने का निमंत्रण मिला ?)

 

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जो सचाई के साथ सीखना चाहते हैं उनके लिये यहां सब प्रकार की संभावनाएं हैं । एक ही चीज है जो बाहर मिल सकती हैं  और यहां नहीं मिलती, वह है बाह्य अनुशासन का नैतिक दबाव ।

 

  यहां तुम स्वतंत्र हो और एकमात्र वही दबाव रहता हैं जिसे तुम अपने-आप डालो-काते कि तुम निष्कपट ओर सच्चे हो ।

 

 अब फैसला तुम्हें करना है ।

 

(३-८-१९६६)

 

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कछ लड़के-लड़कियां का कहना है कि बे यहां पढ़ाई के लिये आये हैं साधना के लिये नहीं इसलिये बे जो चाहे कर सकते हैं उन्हें क्या उत्तर देना चाहिये या उनके प्रति कैसी रखनी चाहिये?

 

उनसे कहा जा सकता हैं कि उन्हें यहां नहीं रहना चाहिये । हम किसी पर योग थोपते नहीं हैं; लेकिन उन्हें एक स्वस्थ और समुचित जीवन बिताना चाहिये, और अगर वे यह नहीं चाहते तो उन्हें कहीं और चले जाना चाहिये ।

 

 माताजी क्या उन्हें यहां से भेजा जा सकता है?

 

उनमें से किसी एक को मेरे पास ले आओ जो पढ़ाई में बहुत कमजोर हो । मै बोलूं नहीं, कुछ परीक्षण करूंगी, अगर वह सफल हुआ तो तुम औरों को भी ला सकते हो।

 

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  (एक अध्यापक ने लिखा कि कुछ विद्यार्थी हमारे शिक्षा-केंद्र ले संतुष्ट नहीं हैं !)

 

 तुम उनसे कह सकते हो अगर उन्हें यह विश्वास नहीं हैं कि यहां पर वे कुछ ऐसी चीज सीख सकते हैं जो कहीं और नहीं बढ़ायी जाती तो अच्छा है कि वे विद्यालय बदल लें । उनके बिना हमें कोई हानि न होगी ।

 

साधारण-सी भीड़ होने की जगह कुछ चुने हुए लोगों का होना ज्यादा अच्छा हैं ।

 

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  (एक बिधार्थी ने अपना पाठ्यक्रम लगभग समाप्त कर लिया? उसके सामने थी कि अमरीका में जाकर आये की पड़ी करे श आश्रम मे तस्कर काम करे उसने माताजी से पूछा)

 

मैं तुम्हें तुरंत बता सकतीं हूं कि यह इस पर निर्भर है कि तुम जीवन से क्या चाहते हो । अगर तुम साधारण जीवन या सामान्य पुराने ढंग के अनुसार सफल जीवन बिताना चाहते हो तो अमरीका चले जाओ और भरसक प्रयास करो ।

 

  इसके विपरीत, अगर तुम भविष्य के लिये और उसमें बननेवाली नयी सृष्टि के लिये तैयार होने की अभीप्सा करते हो तो यहीं बने रहो और जो आनेवाला है उसके लिये अपने-आपको तैयार करो ।

 

(१७-१ -१९६९)

 

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  हम यहां केवल उन्हीं बच्चों को चाहते हैं जो अपने-आपको नये जीवन के लिये तैयार करना चाहते हैं और जो जीवन में सफलता की अपेक्षा, प्रगति को ज्यादा महत्त्व देते हैं । हम उन्हें नहीं चाहते जो आजीविका कमाने और सांसारिक सफलता पाने के लिये अपने-आपको तैयार करना चाहते हैं । वे कहीं और जा सकते हैं ।

 

  हम बच्चों से क्या आशा करते हैं यह समह्म सखने के लिये उन्हें दस वर्ष से ऊपर होना चाहिये । जो बच्चे एक नये साहसिक कार्य के लिये तैयार हैं, जो नवजीवन चाहते हैं, जो उच्चतर उपलब्धि के लिये तैयार हैं, जो चाहते हैं कि अभीतक जो बना रहा है वह न रहकर बदले, उन बच्चों का स्वागत है ।

 

हम उनकी सहायता करेंगे !

 

(जनवरी १९७२)

 

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  पुनर्दर्शनाय, मेरे बच्चे, तुम्हें जो अनुभूति हुई हैं उसे कभी न भूल, और कोई बाहरी अंधेरा तुम्हारे अंदर घुसकर तुम्हारी चेतना को ढंकने न पाये ।

 

मै तुम्हारे साथ हूं ।

 

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 पुनर्दर्शनाय, मेरे बच्चों, मैं चाहती हूं कि तुम्हारे लिये जीवन सुखद हों, और एक दिन तुम 'ज्योति' और 'सत्य' में जन्म लो ।

 

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